जीवन के चक्रव्यूह में, मानव फंसता जाता है। कभी नम्रता का कवच लिए तो कभी क्रोध का बाण चलाता है। कभी अहम का धार चले, कभी अश्रु सैलाब लाया है। प्राण मुक्त होकर ही वो भंवर से निकल पता है।
जीवन के चक्रव्यूह में, मानव फंसता जाता है। कभी नम्रता का कवच लिए तो कभी क्रोध का बाण चलाता है। कभी अहम का धार चले, कभी अश्रु सैलाब लाया है। प्राण मुक्त होकर ही वो भंवर से निकल पता है।