महत्वाकांक्षा

महत्वाकांक्षाओं का शहर है ये, थोड़ा संभल कर चला करो। अपेक्षा किसी से करो नहीं, उपेक्षा किसी का करो नहीं। मंज़िल मिल ही जायेगी, ख़ुद पर भरोसा कर बढ़ा करो।

कविता उपाध्याय

पहेली

ज़रूरी नहीं हर बात को कोई मुकाम मिले। कुछ बातें अनकही ही रहने दो, सुनकर जिसे मिजाज़ ही बदल जाए। ऐसी बातें अनसुनी ही रहने दो। कई बार बिखरी बातें सिमट नहीं पाती, कुछ गुत्थियां अनसुलझी ही रहने दो। जटिल है सफ़र ज़िंदगी का, कुछ पहेली अनबुझी ही रहने दो।

कविता उपाध्याय

कौन हूं मैं?

हूं कौन मैं इसी तलाश में

कट रहा सांसों का सफ़र,

कभी सोचूं किसी का कर्ज़ हूं मैं

तो कभी किसी का उधार मैं।

रिश्तों की इस लेन देन में

कभी आंखों का पानी तो कभी

लब की मुस्कान हूं मैं।

कभी मोह भंग हुआ तो पतझड़

कभी वासंतिक फुहार हूं मैं।

खुद की तलाश में उलझी कभी

किनारों को पाने का उल्लास

तो कभी खुद में ख़ुद को पाने का
प्रयास हूं मैं।

कविता उपाध्याय

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