हिमाकत

उन्हें देखकर अनायास ही मुस्कुरा दियामेरी इस हिमाकत को उन्होंने गुनाह बना दियासजा वो दे रहे इस कदर, नज़रें मिलाते नहींऔर बदल ली अपनी डगर।

चक्रव्यूह

जीवन के चक्रव्यूह में, मानव फंसता जाता है। कभी नम्रता का कवच लिए तो कभी क्रोध का बाण चलाता है। कभी अहम का धार चले, कभी अश्रु सैलाब लाया है। प्राण मुक्त होकर ही वो भंवर से निकल पता है।

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