महत्वाकांक्षाओं का शहर है ये, थोड़ा संभल कर चला करो। अपेक्षा किसी से करो नहीं, उपेक्षा किसी का करो नहीं। मंज़िल मिल ही जायेगी, ख़ुद पर भरोसा कर बढ़ा करो। कविता उपाध्याय
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पहेली
ज़रूरी नहीं हर बात को कोई मुकाम मिले। कुछ बातें अनकही ही रहने दो, सुनकर जिसे मिजाज़ ही बदल जाए। ऐसी बातें अनसुनी ही रहने दो। कई बार बिखरी बातें सिमट नहीं पाती, कुछ गुत्थियां अनसुलझी ही रहने दो। जटिल है सफ़र ज़िंदगी का, कुछ पहेली अनबुझी ही रहने दो। कविता उपाध्याय
रुख
सपनों के पंख लगा उड़ा जा रहा था मन परिंदा, हवाओं ने रुख बदल दिया ज़माने की तरह।